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चैत्र मास अयोध्या की दृष्टि से जन्मभूमि रूपी पुरी सुलभनी
तुलसी अपने राम को रीझ भयो या खीझ ठेलटो सीधी जादरि खेत परे को बीज
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः
सनातन हिन्दू धर्म की पंचांग व्यवस्था में वर्ष के द्वादश मासों का विशेष धार्मिक सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक महत्त्व है।
इन सभी मासों में चैत्र मास को विशेष सम्मान प्राप्त है क्योंकि यह नववर्ष का प्रथम मास है। वैदिक परंपरा के अनुसार इसी मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नववर्ष का उदय होता है। यह मास न केवल कालचक्र का प्रारंभिक बिंदु है, अपितु एक मातृवत् मास है जो अपने भक्तों को समस्त प्रकार के अभीष्ट फल प्रदान करने में सक्षम है।
इस मास में दान जप तप व्रत हवन एवं यज्ञ आदि सत्कर्मों का विशेष विधान बताया गया है। यह मास समस्त पापों का नाश करने वाला, आशुतोषता प्रदान करने वाला तथा भगवद् कृपा को आकर्षित करने वाला है। वेदों में वर्णित उपमाओं के अनुसार, जिस प्रकार समस्त विद्याओं में वेद, वृक्षों में कल्पवृक्ष, धेनुओं में कामधेनु, मंत्रों में प्रणव, नदियों में गंगा, आयुधों में वज्र, पुष्पों में कमल और रत्नों में कौस्तुभ सर्वोत्तम माने गए हैं, उसी प्रकार मासों में चैत्र मास को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है।
यथार्थ में जैसे
विद्याओं में वेदविद्या
मंत्रों में ॐकार
वृक्षों में कल्पवृक्ष
गायों में कामधेनु
नागों में शेषनाग
पक्षियों में गरुड़
देवों में श्रीविष्णु
रत्नों में कौस्तुभ
पुष्पों में कमल
और नदियों में गंगा श्रेष्ठ हैं
वैसे ही मासों में चैत्रमास परम श्रेष्ठ माना गया है। धर्मज्ञों और पुण्यात्माओं ने इसे पुण्य मोक्ष और भगवत्प्रीति की दृष्टि से सर्वोत्तम फलदायी घोषित किया है।
यह मास भगवती लक्ष्मी एवं भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का उत्तम अवसर है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार विशेषतः जब सूर्य मीन राशि में स्थित हो, उस पुण्यकाल में जो भक्त सूर्योदय से पूर्व स्नान कर भगवान श्रीहरि का स्मरण करते हैं, उन पर दिव्य अनुकम्पा की वर्षा होती है। उस समय समस्त तीर्थ जैसे गंगाद्वार, कुरुक्षेत्र, प्रभास, द्वारका, काशी आदि जल में प्रतिष्ठित हो जाते हैं।
शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है
नास्ति वेदसमं शास्त्रं नास्ति गंगासमा नदी
नास्ति चैत्रसमो मासः त्रैलोक्ये सत्यमेव हि
शास्त्रों में वर्णित है कि त्रिलोक के समस्त तीर्थ चैत्र मास में जल के माध्यम से सुलभ हो जाते हैं। इसी कारण शेषशायी भगवान विष्णु को यह मास अत्यंत प्रिय है। जैसे वेद शास्त्रों में श्रेष्ठ हैं, गंगा समस्त तीर्थों में सर्वोपरि है, जलदान सभी दानों में प्रमुख है, वैसे ही चैत्र मास समस्त पवित्रताओं में सर्वोपरि है। इस कारण प्रत्येक व्यक्ति को इस मास में धर्मानुसार समस्त सत्कर्मों का पालन करना चाहिए।
इस पुण्यभूत संसार में पापकर्मों से मुक्ति हेतु अयोध्या अत्यंत दुर्लभ है। पाप तभी तक जीवित रहता है जब तक व्यक्ति अयोध्यापुरी का दर्शन नहीं कर लेता। इसी मास में चैत्रमास सबसे श्रेष्ठ है और उसमें भी शुक्ल पक्ष, शुक्ल पक्ष में भी प्रतिपदा से लेकर नवमी तक की तिथियाँ क्रमशः उत्तरतर श्रेष्ठ मानी जाती हैं। इन नौ तिथियों में भी नवमी तिथि सबसे श्रेष्ठ है क्योंकि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में, मध्यान्ह काल में, जब पाँच ग्रह उच्च के स्थान पर थे, उसी नवमी तिथि को धर्म एवं मर्यादा की स्थापना हेतु मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का इस संसार में अवतरण हुआ था। इस कारण यह तिथि और भी श्रेष्ठ मानी जाती है।
उनके अवतरण के क्षणों में देवताओं ने दुन्दुभियाँ बजाईं, आकाश से पुष्पवर्षा हुई, ब्रह्मा, रुद्र, सूर्य, इन्द्र आदि देवगण स्तुतिपूर्वक अभिनंदन करने हेतु उपस्थित हुए। उस दिव्य क्षण का साक्षात्कार कर भगवान विष्णु ने समस्त देवताओं को वरदान दिया कि "यह चैत्र मास समस्त मासों में श्रेष्ठ होगा।" अतः इस मास में किया गया प्रत्येक जप, स्नान, दान, ध्यान आदि कार्य अनेक गुना फल देने वाला होता है।
पुण्य की अभिलाषा से जैसे कोई माघ मास में प्रयाग तीर्थ में स्नान करता है, कार्तिक मास में काशी में पंचगंगा तीर्थ में स्नान करता है, भगवान विष्णु के प्रिय वैशाख मास में जैसे द्वारका में स्नान करता है, वैसे ही चैत्रमास में अयोध्या में रामतीर्थ में स्नान का फल बताया गया है। चैत्रमास में विशेषतः अयोध्या नगरी में किया गया स्नान अत्यंत पुण्यदायक है, जिसका अनुभव मनुष्यमात्र से लेकर सिद्धपुरुषों, देवताओं एवं गंधर्वों तक सभी ने किया है, एवं स्नान के पश्चात श्रीरामचन्द्र पूजन अवश्य करना चाहिए।
अश्वमेध यज्ञ के द्वारा, सूर्यग्रहण के समय कुरुक्षेत्र तीर्थ में तथा समय योग्य अन्य यज्ञों के द्वारा जिस पुण्य फल की प्राप्ति होती है वह फल केवल अयोध्याजी में चैत्रमास में स्नान करने से प्राप्त हो जाता है। चैत्रमास में अयोध्याजी में सरयू में स्नान करने से रघुनाथ श्रीराम जी प्रसन्न होते हैं। उनकी प्रसन्नता से व्यक्ति संसार में अपने सभी मनोकामनाओं को पूरा कर लेता है, केवल इतना ही नहीं अपितु मृत्यु के उपरांत उसे मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।
काशी के निवास में, विवाह के कार्य में, श्रीमद्भगवद्गीता के अखंड पाठ में, श्रीराम जी के ध्यान में, चैत्रस्नान में तथा मददान करते समय अनेक प्रकार के विघ्न आते हैं, किन्तु व्यक्ति को सत्कर्मों को नहीं छोड़ना चाहिए। इस पवित्र तपोभूमि में ब्रह्मा विष्णु तथा शिव के साथ सभी देवता तथा पवित्रात्मा, ऋषिगण, मुनिगण भी गुप्त रूप से निवास करते हैं। यह तीर्थ समस्त पापों का नाश करने वाला है और पूर्ण मोक्ष प्रदान करने वाला है।
स्कन्दपुराण आदि ग्रन्थों के अनुसार जैसे माघ मास में प्रयाग स्नान, वैशाख में द्वारका स्नान, और कार्तिक में काशी स्नान विशेष पुण्यदायी माने गए हैं, उसी प्रकार चैत्र मास में अयोध्या स्थित रामतीर्थ में एक बार स्नान करने से भी उन सभी पुण्यों की प्राप्ति हो जाती है।
कहा गया है
प्रयागे मासरेण च स्नात्वा यत् फलं लभेत्
तत् फलं रामतीर्थे तु स्नात्वा एकेन लभ्यते
यह तीर्थ न केवल समस्त पापों का विनाश करता है, अपितु मोक्ष प्रदान करने वाला भी है। जो व्यक्ति चैत्र मास में सरयू नदी में स्नान करता है, श्रीराम जन्मभूमि का दर्शन करता है, और भगवान श्रीराम का पूजन करता है—उसे न तो यज्ञ की आवश्यकता रहती है, न ही तप या तीर्थयात्रा की; वह स्वयं मुक्तिपथ को प्राप्त हो जाता है।
चैत्र मास में अयोध्या में किया गया स्नान, जप, ध्यान, यज्ञ एवं दान से कुछ अनेक जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। यह वही पुण्य है जो अश्वमेध यज्ञ, सूर्यग्रहण कालीन स्नान अथवा सम्पूर्ण वेदाध्ययन के फल के समान माना गया है।
विघ्नेश्वर श्रीगणेश का पूजन, पाण्डव क्षेत्र में स्थित देवालयों का दर्शन और नवरात्रों में रामलला का पूजन, इस मास की परमप्राप्ति का श्रेष्ठ साधन माना गया है। जो फल हजारों राजसूय यज्ञों, जीवनपर्यंत अहिंसक व्रतों या आश्रमवासी तपस्वियों के तप से प्राप्त होता है, वही फल केवल अयोध्या दर्शन से भी प्राप्त हो जाता है।
अतः हे धर्मनिष्ठ जनो
चैत्र मास को केवल एक मास न समझें, यह धर्म, पुण्य, मोक्ष एवं आत्मकल्याण की स्वर्णिम विभा है। इस मास में सत्कर्मों के माध्यम से आत्मोन्नति का पथ प्रशस्त करें और भगवान श्रीरामचन्द्र के चरणों में अपना जीवन समर्पित करें।